Tuesday, 27 October 2015

कितनी पुड़िया खा रहा है फलाने के

कितनी पुड़िया खा रहा है फलाने के
सींक होता जा  रहा है फलाने के

पीना है तो रोज़ घी-दूध पी जम के
बीड़ी क्यों सुलगा रहा है फलाने के

मैंने तेरी कौन-सी भैंस खोली है
तू क्यों घुन्ना रहा है फलाने के

खेत को,खलिहान को छोड़ के तू रोज़
ताश क्यों खिलवा रहा है फलाने के

पहले तो घर-घूरा देखा नहीं अपना
अब क्यों पछता रहा है फलाने के

जी- हुज़ूरी करके तू एक लोफर की
नाक क्यों कटवा रहा है फलाने के

पूँछ तेरी दाब ली है किसी ने क्या
क्यों  गुलाटें खा रहा है फलाने के

हर कोई ही शेर है देख चंबल में
कौन पे भन्ना रहा है फलाने के

घर नहीं, जोरू नहीं, कुछ नहीं है पास
किस पे तू इतरा रहा है फलाने के

लेने के देने न पड़ जायें देख तुझे
क्यों उसे मिलका रहा है फलाने के

मालपूये ,खीर, बूँदी की सुन-सुन के
लार क्यों टपका रहा है फलाने के























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