Wednesday, 21 October 2015

उठो धरा के वीर-सपूतों, खाकी की शान बढ़ायें

उठो धरा के वीर-सपूतों, खाकी की शान बढ़ायें
कर्त्तव्य - पथ पे अनवरत,आगे हम बढ़ते जायें

डरे नहीं दुश्मन के आगे,लड़ के क़ुर्बानी  ठाने
देश का रक्षक हर पल अपना सीना  चौड़ा ताने
सब बाधाओं से डट के, अपना परचम लहरायें
उठो धरा के वीर-सपूतों, खाकी की शान बढ़ायें

अपने-पराये का भेद, न मन के अंदर उपजे
निष्ठा, त्याग, संकल्प का सिरमौर माथे पे सिरजे
छूते नहीं स्वाभिमान कभी भी, गौरव- गाथा दोहरायें
उठो धरा के वीर-सपूतों, खाकी की शान बढ़ायें
  
चोर-लुटेरों की गर्दन में, फंदा नागपाश का डालें
धूमिल कर दें  ज़ुल्मियत की, करतूतें और चालें
झिलमिल-झिलमिल न्याय का दीपक, नित हृदय में जलायें
उठो धरा के वीर-सपूतों, खाकी की शान बढ़ायें
 

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