किसको मैं बाँधूगी राखी (रक्षाबंधन पर गीत)-मनोज शर्मा 'मधुर'
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आया है रक्षाबंधन, घरों में बरस रहा कंचन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
प्यार के दो बोलों को सुनने, वर्षों आस लगाई
बहिना-बहिना कहने वाला, मिला न कोई भाई
रो-रो के पथराई आँखें, बहता रहा अंजन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
मन के सारे धन से मैंने, ले ली रेशम डोरी
और रखी फिर थाली में, चावल, हल्दी , रोरी
द्वार को तकते-तकते मैं, खनकाती रही कंगन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
सखी-सहेली हैं जितनी , ज़ागीरें सबने पाईं
देख-देख अपने वीरा को, मन ही मन वे इतराईं
जलभुन जाये मेरा तन-मन, लहू करे मंथन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
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आया है रक्षाबंधन, घरों में बरस रहा कंचन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
प्यार के दो बोलों को सुनने, वर्षों आस लगाई
बहिना-बहिना कहने वाला, मिला न कोई भाई
रो-रो के पथराई आँखें, बहता रहा अंजन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
मन के सारे धन से मैंने, ले ली रेशम डोरी
और रखी फिर थाली में, चावल, हल्दी , रोरी
द्वार को तकते-तकते मैं, खनकाती रही कंगन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
सखी-सहेली हैं जितनी , ज़ागीरें सबने पाईं
देख-देख अपने वीरा को, मन ही मन वे इतराईं
जलभुन जाये मेरा तन-मन, लहू करे मंथन
किसको मैं बाँधूगी राखी, पूछ रहा नंदन
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