Sunday, 17 January 2016

तेरे दिल की बंद खिड़की रोज़ खुलनी चाहिए

तेरे दिल की बंद खिड़की रोज़ खुलनी चाहिए
दुश्मनी की सब क़िताबें आज जलनी चाहिए

सींच दो मेरे लहू से आज उजड़े बाग़ों को
हो गईं जो ख़ुश्क कलियाँ फिर से खिलनी चाहिए

क़ैद कर लो गिरगिटों को जो करें गुस्ताख़ियाँ
इस चमन में तितलियाँ बेखौफ़  मिलनी चाहिए

रह भलें जाये अधूरी यार तेरी मन्नतें
पर इबादत की घड़ी दिन-रात चलनी चाहिए

क्या हुआ जो लड़खड़ा के आज फिर से गिर पड़े
कोशिशें तेरी मुसलसल रोज़ चलनी चाहिए

हो गयें छाले बहुत से देश के सुन पाँव में
इस सियासत की शुरू से नींव डलनी चाहिए

है अगर पत्थर ज़माना यार रहने दे उसे
पेड़ ऐसा बन, जहाँ को छाँव मिलनी चाहिए

मायने-   ख़ुश्क- सूखी हुईं , मुसलसल-लगातार,  बाग़-उद्यान

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