Thursday, 8 October 2015

ग़ज़लें - मनोज शर्मा 'मधुर'

ग़ज़लें - मनोज शर्मा 'मधुर'
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1.
प्यार की राह में, हमनशीं के लिए ,
आँख नम है, किसी की किसी के लिए ।


हर तरफ़, लौ जलाने से क्या फ़ायदा,
चाँद इक है, बहुत आशिक़ी के लिए ।


गुल वफ़ा के खिलें, हर जगह अब कहाँ,
प्यार कुछ भी नहीं मतलबी के लिए ।


क्या पता, कब कहाँ, इश्क़ दे दे दग़ा,
बावफ़ा याद है, ज़िन्दगी के लिए ।


वक़्त भर देता है, ज़ख़्म सारे हरे,
सोच मत, भूल से, ख़ुदकुशी के लिए ।


वो हँसी, वो ख़ुशी, हो गईं लापता,
अश्क़ हैं, बस बचे ज़िन्दगी के लिए ।


रंज़ है, ज़ख़्म है, सोज़ भी है ' मधुर'
और क्या चाहिए शायरी के लिए


मायने:- हमनशीं-साथ बैठने वाला/ दोस्त, बावफ़ा-वफ़ादार, रंज़-दु:ख, सोज़-जलन
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2.
बारहा यार को हम मनाते रहे,
उम्र यूँ दोस्ती की बढ़ाते रहे ।


एक हम हैं , मुहब्बत लुटाते रहे,
एक वो हैं , जो रिश्ते भुनाते रहे ।


इक ख़ता भी हमारी बताई नहीं,
बेवजह  वो सदा मुँह फुलाते रहे ।


धूप बन के कभी, छाँव बन के कभी,
शिद्दते इश्क़ वो आज़माते रहे ।


इश्क़ की जो क़िताबें थीं इस क़ल्ब में ,
हम पढ़ाते रहे, वो  छुपाते रहे ।


दोस्त हैं वो हमारे सुना था कभी,
इस भरम में रफ़ाक़त निभाते रहे ।


इश्क़ उनका 'मधुर' रास आया नहीं,
वस्ल से वो सदा जी चुराते रहे ।


मायने:- बारहा-बार-बार, शिद्दते इश्क़-इश्क़ की तीव्रता, क़ल्ब-हृदय, रफ़ाक़त-दोस्ती, वस्ल-मिलन
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3.
रूठा साहिल है, मैडमजी ।
जीवन मुश्किल है, मैडमजी ।


पलकों पे गुल, रख तो लेता,
चाहत बुज़दिल है , मैडमजी ।


पत्थर होता,  कोशिश करते,
वो तो जाहिल है , मैडमजी ।


तुम भी ठोकर मारो अपनी,
सज्दे में दिल है , मैडमजी ।

रेज़ा-रेज़ा, हँसता मुझपे,
कैसा क़ातिल है, मैडमजी ।


फिक़्र नहीं , कोई अपनों की,
कितना ग़ाफ़िल है, मैडमजी  ।


सोच 'मधुर' क्या होगा तेरा,
तेरी मंज़िल है, मैडमजी ।


मायने :-  साहिल-किनारा, जाहिल-अशिष्ट, सज्दा-ज़मीन पर सर रखे हुए, रेज़ा-टुकड़ा,  ग़ाफ़िल-संज्ञाहीन/ बेख़बर

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