हिन्दी के ढ़ोल बजायें (गीत)- मनोज शर्मा 'मधुर'
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उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
नगरी-नगरी में हिन्दी के, आओ ढ़ोल बजायें
मम्मी, डैडी, अंकल, आंटी सब अंग्रेजी के रेले
संस्कृति की चूनर से , जम के होली खेले
हिन्दी की महत्ता का, जन-जन को पाठ पढ़ायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
रसवंती अपनी हिन्दी के, हम भूल रहे अफ़साने क्यों
पछुवा हवा के पीछे-पीछे, बन बैठे दीवाने क्यों
स्कूलों में, कॅालेजों में, फिर हिन्दी का अलख जगायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
हिन्दीवालों को क्या करना , क्या लिखा अंग्रेजी में
अंग्रेजों का जूता लटका, हमको दिखा अंग्रेजी में
रंग-बिरंगे गमलों में नित, हिन्दी की पौध लगायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
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उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
नगरी-नगरी में हिन्दी के, आओ ढ़ोल बजायें
मम्मी, डैडी, अंकल, आंटी सब अंग्रेजी के रेले
संस्कृति की चूनर से , जम के होली खेले
हिन्दी की महत्ता का, जन-जन को पाठ पढ़ायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
रसवंती अपनी हिन्दी के, हम भूल रहे अफ़साने क्यों
पछुवा हवा के पीछे-पीछे, बन बैठे दीवाने क्यों
स्कूलों में, कॅालेजों में, फिर हिन्दी का अलख जगायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
हिन्दीवालों को क्या करना , क्या लिखा अंग्रेजी में
अंग्रेजों का जूता लटका, हमको दिखा अंग्रेजी में
रंग-बिरंगे गमलों में नित, हिन्दी की पौध लगायें
उठो कलम के रहनुमाओं, मिलकर ज़ोर लगायें
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