Saturday, 28 November 2015

ज़हन में क्या घुल रहा आजकल

ज़हन में क्या घुल रहा  आजकल
ज़हर लफ़्ज़ों में मिल रहा  आजकल

गिला अब किसी ग़ैर से क्या करें
चराग़ों से घर जल रहा आजकल

रियाया को इतनी ख़बर ही नहीं
किसे उसका हक़ मिल रहा आजकल

सियासत तुझे होश भी है क्या
नशे में शहर चल रहा आजकल

जिसे प्यार में बाग़बाँ मिल गया
वही चेहरा खिल रहा आजकल

घटाओं से तेज़ाब गिरने लगा
 हरा रंग सब जल रहा आजकल

'मधुर' बेख़बर तू जिधर है खड़ा
महल कागज़ी हिल रहा आजकल

मायने- ज़हन/ज़ेह्न -सोच/चेतना, गिला-शिकायत, रियाया-प्रजा, बाग़बाँ-माली/बाग़ की देखभाल करने वाला

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