ग़ज़लें - मनोज शर्मा 'मधुर'
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1.
प्यार की राह में, हमनशीं के लिए ,
आँख नम है, किसी की किसी के लिए ।
हर तरफ़, लौ जलाने से क्या फ़ायदा,
चाँद इक है, बहुत आशिक़ी के लिए ।
गुल वफ़ा के खिलें, हर जगह अब कहाँ,
प्यार कुछ भी नहीं मतलबी के लिए ।
क्या पता, कब कहाँ, इश्क़ दे दे दग़ा,
बावफ़ा याद है, ज़िन्दगी के लिए ।
वक़्त भर देता है, ज़ख़्म सारे हरे,
सोच मत, भूल से, ख़ुदकुशी के लिए ।
वो हँसी, वो ख़ुशी, हो गईं लापता,
अश्क़ हैं, बस बचे ज़िन्दगी के लिए ।
रंज़ है, ज़ख़्म है, सोज़ भी है ' मधुर'
और क्या चाहिए शायरी के लिए
मायने:- हमनशीं-साथ बैठने वाला/ दोस्त, बावफ़ा-वफ़ादार, रंज़-दु:ख, सोज़-जलन
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2.
बारहा यार को हम मनाते रहे,
उम्र यूँ दोस्ती की बढ़ाते रहे ।
एक हम हैं , मुहब्बत लुटाते रहे,
एक वो हैं , जो रिश्ते भुनाते रहे ।
इक ख़ता भी हमारी बताई नहीं,
बेवजह वो सदा मुँह फुलाते रहे ।
धूप बन के कभी, छाँव बन के कभी,
शिद्दते इश्क़ वो आज़माते रहे ।
इश्क़ की जो क़िताबें थीं इस क़ल्ब में ,
हम पढ़ाते रहे, वो छुपाते रहे ।
दोस्त हैं वो हमारे सुना था कभी,
इस भरम में रफ़ाक़त निभाते रहे ।
इश्क़ उनका 'मधुर' रास आया नहीं,
वस्ल से वो सदा जी चुराते रहे ।
मायने:- बारहा-बार-बार, शिद्दते इश्क़-इश्क़ की तीव्रता, क़ल्ब-हृदय, रफ़ाक़त-दोस्ती, वस्ल-मिलन
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3.
रूठा साहिल है, मैडमजी ।
जीवन मुश्किल है, मैडमजी ।
पलकों पे गुल, रख तो लेता,
चाहत बुज़दिल है , मैडमजी ।
पत्थर होता, कोशिश करते,
वो तो जाहिल है , मैडमजी ।
तुम भी ठोकर मारो अपनी,
सज्दे में दिल है , मैडमजी ।
रेज़ा-रेज़ा, हँसता मुझपे,
कैसा क़ातिल है, मैडमजी ।
फिक़्र नहीं , कोई अपनों की,
कितना ग़ाफ़िल है, मैडमजी ।
सोच 'मधुर' क्या होगा तेरा,
तेरी मंज़िल है, मैडमजी ।
मायने :- साहिल-किनारा, जाहिल-अशिष्ट, सज्दा-ज़मीन पर सर रखे हुए, रेज़ा-टुकड़ा, ग़ाफ़िल-संज्ञाहीन/ बेख़बर