Saturday, 27 February 2016

सौ समंदर के बराबर आस है

सौ समंदर के बराबर  आस है
मुफ़लिसी में आजकल उल्लास है

मुझको आँखें  मत दिखा ए ज़िन्दगी
देख मेरे हाथों में सल्फास है

रोटी, कपड़ा भी मयस्सर अब नहीं
 उड़ रहा सरकार का उपहास है

तुम भी लूटो, हम भी लूटें देश को
हर सदी में  ऐसा ही  इतिहास है

रोज़-रोज़ वज़ूद की इस ज़ंग में
सल्तनत में मच रहा संत्रास है

ज़ुर्म की फ़ौरन सज़ा मिलती नहीं
संविधानी तंत्र ये बकवास है

हुस्न वालों की निगाहों  में 'मधुर'
इश्क़-मोहब्बत तो  टाइमपास है

मायने: मुफ़लिसी-ग़रीबी, सल्फास-कीटनाशक ज़हर, मयस्सर-उपलब्ध,  उपहास -मज़ाक, संत्रास-भय का वातावरण/ आतंक

Saturday, 23 January 2016

चलो वापिस चलें हम गाँव के लिए

चलो वापिस चलें हम गाँव के लिए
दो पेड़ नहीं शहर में छाँव के लिए

मशीनी घोड़ों की लत इस क़दर लगी
क़ुबूल नहीं  क़दम भर पाँव के लिए

कोई कब से नहीं आया है अपने घर
चलो कौआ तलाशें काँव के लिए

जिधर देखा, मिली है आग हर तरफ़
कहाँ से लाऊँ  गुलशन ठाँव के लिए

लगाना है, लगा घर अपना दाँव पे
वतन ज़ौजा नहीं सुन दाँव के लिए

मायने:  ठाँव के लिए-ठहरने के लिए, ज़ौजा-जोरू/पत्नी, गुलशन-बाग़

Sunday, 17 January 2016

स्वतंत्रता दिवस पर गीत

स्वतंत्रता दिवस पर गीत - मनोज शर्मा 'मधुर'
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दासता की प्रेतछाया  राष्ट्र से भगाना सीख लो ।
स्वतंत्रता के स्वर्ण- कलश को सर पे उठाना सीख लो ।

सोचना भी भूल है कि, हम सब स्वाधीन हैं
सोच के महल में हम आज भी पराधीन हैं
स्वार्थपरता के तेल को तिल-तिल बहाना सीख लो
स्वतंत्रता के स्वर्ण- कलश को सर पे उठाना सीख लो ।

विश्व के हृदय पटल पर आचरण का गुणगान है
चारण होना दरबार का, स्वाभिमान का अपमान है
मानवता के दीप को सूर्य -सा जलाना सीख लो
स्वतंत्रता के स्वर्ण- कलश को सर पे उठाना सीख लो ।

छोड़ो तेरा-मेरा करना, क्या रखा वैमनस्य में है
प्रगति का वांछित पथ तो, मित्रों सामंजस्य में है
सहभागिता के पुष्प को सुगंधित बनाना सीख लो
स्वतंत्रता के स्वर्ण- कलश को सर पे उठाना सीख लो ।

किसको मैं बाँधूगी राखी (रक्षाबंधन पर गीत)

किसको मैं बाँधूगी  राखी (रक्षाबंधन पर गीत)-मनोज शर्मा 'मधुर'
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 आया है रक्षाबंधन, घरों में बरस रहा कंचन
किसको मैं बाँधूगी  राखी,  पूछ रहा नंदन

प्यार के दो बोलों को सुनने, वर्षों आस लगाई
बहिना-बहिना कहने वाला, मिला न कोई भाई
रो-रो के पथराई आँखें, बहता रहा अंजन
किसको मैं बाँधूगी  राखी,  पूछ रहा नंदन

मन के सारे धन से मैंने, ले ली रेशम डोरी
और रखी फिर थाली में, चावल, हल्दी , रोरी
 द्वार को तकते-तकते मैं, खनकाती रही कंगन
किसको मैं बाँधूगी  राखी,  पूछ रहा नंदन

सखी-सहेली हैं जितनी , ज़ागीरें सबने पाईं
देख-देख अपने वीरा को, मन ही मन वे इतराईं
जलभुन जाये मेरा तन-मन, लहू करे   मंथन
किसको मैं बाँधूगी  राखी,  पूछ रहा नंदन

नववर्ष पर गीत



नगर -नगर में धूम मची है झूम रहा  गगन है
नया साल है उमंग नई है नया खिला सुमन है

रिश्तों की नई पौध लगाने अन्तर्मन झकझोड़ दो
जीवन के बेसुध रथ को नई दिशा नया मोड़ दो
अतीत के पन्ने फाड़ के, करना फिर से हवन है
नया साल है उमंग नई है नया खिला सुमन है

बुरी आदतें, बुरे मंसूबे आओ हम-तुम छोड़ दें
नशा भरा है जिस बोतल में , हाथ उसके  जोड़ लें
दुनिया में सबसे पूजनीय अपना चाल-चलन है
नया साल है उमंग नई है नया खिला सुमन है

अपनी ख़ुशियों की कुछ फसलें मासूमों के घर रौंप  दो
 भूखे पेटों की ज़िम्मेदारी, अपने काँधों को सौंप दो
निष्ठुरता की सोच  का,  करना आज दमन है
नया साल है उमंग नई है नया खिला सुमन है

हाकिम अगर मग़रूर होता ही गया

हाकिम अगर  मग़रूर होता ही गया
सबके दिलों से  दूर होता ही गया

मुंसिफ़ ने अपनी आँखें जब से  मूँद लीं
ज़ुल्मो-सितम  भरपूर होता ही गया

इक बार मय जिसने चढ़ा ली शौक़ में
डेली  नशे  में  चूर  होता  ही  गया

भाषण के मीठे मुरमुरों को बाँटकर
इक मसखरा  मशहूर होता ही गया

इंसानियत की रेल जब-जब चल पड़ी
हासिल ख़ुदा  का नूर होता ही गया

उसने तो थूका और चाटा एक बार
दुनिया में फिर दस्तूर होता ही गया

सौंपा था हमने रहनुमा के हाथ में
जो आम, वो अमचूर होता ही गया

जब-जब चला लव का मधुर सिलसिला
 सबका हृदय  संतूर  होता ही  गया

मायने:- हाकिम- शासक, मग़रूर-अभिमानी, मुन्सिफ़-जज/ इंसाफ़ करने वाला, मसखरा-भाड़/विदूषक, रहनुमा- मार्गदर्शक, दस्तूर-चलन

उसे सोचा, उसे सिरजा, उसे पूजा गया हर पल

उसे सोचा, उसे सिरजा, उसे पूजा गया हर पल
किसी पत्थर, किसी बुत को ख़ुदा माना गया हर पल

कोई तो है सुनेगा जो सदायें उस इरम में से
भरोसे में गदागर को खड़ा पाया गया हर पल

अक़ीदत को, इबादत को क्यों न कहें रियाकारी
न कोई है, न कोई था किसे ढ़ूढ़ा गया हर पल

अज़ब तदबीर क़ायम है ज़मी को कब्ज़ करने की
कहीं मस्ज़िद, कहीं मंदिर बना डाला गया हर पल

क्या हिन्दू ? क्या मुस्लिम? फ़रेबी हैं , ज़रा सुन लो
कभी मतलब, कभी डर से, उसे पूछा गया हर पल

मायने: सिरजा-सृजन किया, इरम-कृत्रिम स्वर्ग, गदागर-याचक, अक़ीदत- आस्था, रियाकारी-पाखंड, तदबीर-युक्ति